Saturday, November 15, 2014

आबुआ दिशुम-आबुआ राज

मैँ झारखंड के खाँटी आदिवासी इलाके से हुँ,अखबारोँ, किताबी भयावह आँकड़ो और टीवी न्युज चैनल की सनसनाती प्राईम टाइम स्टोरी से अलग मैनेँ अपनी आँखो से लोगोँ की गरीबी भी देखी है और भुख से होते मौत को भी।मैनेँ देखा है भुख और स्वाद के लिए जंगल मेँ एक जंगली सुअर को मारने के लिए फटे कपड़ो मेँ पुरे गाँव का भाला बरझी लेके दौड़ना।मैनेँ देखा है बिना किसी शिकायत सुबह के 6 बजे कल के बने भात को केवल नमक के साथ खा कर दिन गुजार देने की जिजिविषा को भी।मैनेँ देखे है हाथियोँ के द्वारा रौँदे गये आदिवासियोँ के घर,देखा है खटिया पर लिटा के सरकारी अस्पताल जाते मरीज और उसी खटिया पर लौटते लाश को भी।मैनेँ देखी है वैसी झोपड़ी जो रात को ढ़िबरी के उलट जाने से जल कर राख हो जाती है और मुट्ठी मेँ बस राख ले के जिँदगी गुजारते भी देखा है मैनेँ।देखा है उन लोगोँ का घर जो ताड़ के पत्तोँ के छप्पर से बना है और जिन लोगोँ के लिए सरकारी लाल कार्ड,पील कार्ड रामायण और कुरान के जैसा से ज्यादा चमत्कारी है साहब क्युँकि कम से कम इसे दिखा 35 किलो चावल तो नसीब है न पर रामायण बाँच कहाँ पेट भरा है किसी का साहब।ये सब कुछ हमेशा देखने के बाद भी आज जो देखा वो और विचलित कर देने वाला था साहब। मेरे गाँव से ठीक 4 किमी. पश्चिम की ओर जाने पर एक आदिवासीयोँ का गाँव है"डुमरथर"। दोपहर गुजर रहा था तभी एक महुआ पेड़ के नीचे अपनी बाईक खड़ी कर एक फोन रिसीव किया मैँने,वहीँ खजुर की चटाई पर एक लगभग एक साल का बच्चा पेट के बल पड़ा था और जोर जोर से रो चिल्ला रहा था,तभी उसकी माँ आई,महुआ का एक पत्ता उठाया,चम्मच की तरह उसमेँ खजुर की ताड़ी डाली और उस बच्चे को पिला दिया।मैँ सन्न रह गया और खड़ा भी,बच्चा 5 मिनट मेँ चुप हुआ और सोने की मुद्रा मेँ लेट गया। मैनेँ उस औरत से पुछा तो उसने बताया कि ये तो रोज का काम है,उसे खेतोँ मेँ दिन भर काम करने जाना होता है,ऐसे मेँ ये लोग बच्चोँ को ताड़ी या चावल की बनी पौचो शराब की एक दो घुँट पिला सुला देते हैँ और निश्चिँत हो काम पर चले जाते हैँ। उसने मेरे जाते जाते हँसते हुए कहा"हमलोग दुध कहाँ पायेगेँ भैया,हमलोग का बच्चा के लिए यही ठो दुध है"। कुछ नहीँ साहब बस लिख के बता दिया,माफी के साथ कि पता नहीँ आप मेँ कौन अभी अभी मैँगो शेक या मौसंबी का जुस पी फेसबुक पर बैठा हो।साथ ही ये भी प्रार्थना करता है मेरा मन के अभी जब शाम हम अपने बच्चे को बोर्नबिटा का चाँकलेट फ्लेवर वाला बड़ा ग्लास थमायेँगे तब ये पोस्ट बिलकुल याद न आयेँ,नहीँ तो दावा है कि अगर हम मेँ रत्ति भर भी संवेदना होगी तो हाथ से ग्लास छुट के गिर जायेगा साहब।जय हो..

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