Thursday, February 25, 2016

ट्रेन ट्रेन ट्रेन

"कोलकाता-दिल्ली राजधानी" के डब्बे मेँ हूँ।सामने 3 बंगाली,बगल मेँ 2 दक्षिण भारतीय,1 बिहारी और 1 राजस्थानी बैठे हैँ।मतलब आज सच्चे भारतीय रेल मेँ हूँ।और सबसे रोचक बात कि,मेरे ठीक सामने एक अमेरिकन भी बैठा है।सामने जो बंगाली बैठे हैँ उनमेँ एक की उम्र लगभग 45,दुसरा 50 और तीसरा 40 का है।इसमेँ दो कुँवारे हैँ और एक शादीशुदा और तीनोँ घुमने निकले हैँ।जान लिजिए कि भारत मेँ अगर बंगाली ना होते तो ये घुमने घामने और टूर ट्रेवल्स टाईप शब्द विलुप्त हो गये होते।एक यूपीआई-बिहारी वाला जब भी यात्रा मेँ होता है तो वो घुमने नहीँ,शादी विवाह,तिलक,गौना,मुंडन,श्राद्ध,बीमारी,ईलाज,गृह प्रवेश,पूजा पाठ इत्यादी के कारण परिवार सहित यात्रा मेँ होता है पर बिना किसी कारण मूड बना टीम बना के बस घुमने निकलने का जज्बा बंगाली ही एफोर्ट करता है।सामने टेरीकॉटन-पॉलिस्टर मिक्स बड़े बड़े छापा वाला सलेटी,आसमानी और सफेद एवं अपने साईज से सवा नंबर ज्यादा का शर्ट अंडर शर्टिँग कर बड़ा बकलस वाला बेल्ट बाँधे बैठे सपन दा,दुलाल दा और गपोन दा मेँ से गपोन दा सुबह वाला बांग्ला अखबार पढ़ रहे थे और सपन दा ने मोबाईल मेँ एक बांग्ला गीत चलाया है और दुलाल दा सर और हाथ हिला उससे सूर मिला रहे हैँ।सपन बोले हैँ"ऐ खाने आईडिया टाबर नाय।ऐ टो भालो होईलो,कूनो फोन फान आसबेक ना"।दुलाल दा ने संगीतमय सर हिलाते बोला है"आमी फोन टा आफ कोरे राखे छी।आमा के घुमे फीरे बीच कूनो डिसटरबेँस टा बोरदाश नाय"।एक बिहारी जब ट्रेन मेँ रहता है तो भले वो हनिमून जा रहा हो पर फोन पर निर्देश और सुझाव देता लगा रहेगा"हैल्लो,हाँ संटु को पेमेँट दे के भिजवा देना।पीछे वाला दिवार प्लास्टर का काम लगवा देना।अच्छा हाँ बैँक का कागज मँगवा लेना।अरे ऊ बाबूजी के दवाई ले फेर डॉक्टर के देखा देना।गड़िया सरभिसिँग मेँ भेजवा देना"।मतलब वो पत्नी को अपना सिँसियर परफार्मेँस तब तक दिखाता रहेगा जब तक पत्नी मोबाईल छिन ये ना कह देगा"ऐ जी अब का समूचा देश आपही चलाईएगा।घर मेँ आरू त अदमी है।आप दू चार दिन भी त रेस्ट मार लिजिए।फेर सब त आपही के देखना ही है"।पर एक बंगाली इन सब ताम झाम को घर के पोखरे बहा आता है।वो जानता है पृथ्वी घुम रही है,वो संग सँग घुम जाना चाहता है।इधर बैठा राजस्थानी खा पी लगातार लेन देन लाओ पहुँचाओ की बात कर थक सो गया है।आईए अब अमेरिकन पर।ये गेरूआ टीशर्ट,जिँस पहने है।हाथ मेँ तुलसी की माला और लगातार हरे कृष्ण,हरे हरे जप रहा है।सब बड़े अचरज मेँ उसे देख रहे हैँ सबसे ज्यादा खैनी रटाते हुए बिहारी बरमेश्वर सिँह जी।अचानक अंग्रेजी मेँ उस अमेरिकन ने मुझे पूछा"ये भारत मेँ खैनी क्यूँ खाते हैँ?और ये सब लोग इसे रगड़ते क्युँ हैँ?"मैँ अंग्रेजोत्रस्त हिँदीभाषी आदमी उसका प्रश्न सुन अकबका गया फिर जैसे तैसे समझाया कि "जैसे आप स्मैक,कोकिन,हेरोईन लेते हैँ उसी तरह हम मिजाज टाईट करने को खैनी लेते हैँ"।पर उसने फिर पूछा"बट व्हाई रबिश टॉबैको"।मैँने बोला"टेस्टी और ईफेक्टिव बनाने के लिए"।इतने मेँ तब से हमदोनोँ की अंग्रेजी ताक रहे बरमेश्वर बाबू बोले"महराज ई अंगरेज तबे से हुआई हुआई का पूछ रहा है,आप का बताये इसको"।मैँने बताया कि ई खैनी रगड़ने का कारण पूछा और हम असरदार और टेस्टी होना बताये।बरमेश्वर बाबू उचक के बोले हैँ"मर्दे ई बकलोल के बताईए कि ये पुष्टिवर्धक,बलबर्धक,बुद्धिबर्धक, आईटम है और रगड़ने से आयु बढ़ता है।खिला दीजिए न साले को एक चुटकी।सब बुझा जायेगा हुआई हुआई रबिश।इसको भोजपूरी सिखाईए तनी" ये बोल बरमेश्वर बाबू ठहाका लगाये!इतने मेँ वो भी हँसा और बोला"या या आई नो जगन्नाथपुरी"।बरमेश्वर बाबू एकदम उसके मुँह पर सट बोले"अरे भाई साब भोजपूरी,भोजपूरी।जगननाथपुरी नो।भोजपुरी।"।फिर मैँने उसे बताया कि ये बिहार की भाषा है इस पर वो बोला"या या आई नो,नाईस लैँग्वेज।या बिहार।निटिश कुमाअर"।मैँ मुस्कुराया और विडंबना सहित सोचा कि एक बिदेशी भारत को बंगाल और बिहार के नाम से जानता है,केवल भारत नाम से नहीँ।फिर ये सोच थोड़ा गुदगुदाया भी कि अब बिहार लालू नहीँ नितीश कुमार हो रहा है।अब वो अमेरिकन हमसे घुलशर्बत हो चुका है।उसने अंग्रेजी मेँ प्रवचन शुरू किया है"गीता मेँ लिखा है कि औरत सब समस्या की जड़ है।पुरूष थोड़े से सुख के लिए खुद से नियंत्रण छोड़ देता है।गृहस्थ को मोक्ष पाना है तो सब छोड़ कृष्ण की शरण आये।मैँ शांति से बैकुंठधाम जा पाऊँगा क्योँकि मैँ नारी और ऐश्वर्य से दूर हूँ"।फिर वो संस्कूत के श्लोक भी पढ़ने लगा।मैँ दंग।सब दंग।मैँने सोचा गीता मेँ कब महिला को समस्या माना यार।खैर जो हो ये अमेरिकन पूरी तरह भारतीय बाबागिरी मेँ ढल चुका था। पश्चिम की प्रगतिशिलता को पूरवाई वेद पुराण का लकवा मार गया था और मैँ एक सच्चे भारतीय की भाँति संतोष मेँ डुबा था कि चलो साला एक अमेरिकन तो चपेट मेँ आया न।फिर वो बोला"मैँ 19 की उम्र से इस्कॉन मेँ हूँ और भारत घुमता हूँ।आपलोग भाग्यशाली हैँ कि पुण्यभुमि मेँ जन्मे।हम पापी हैँ कि अमेरिका मेँ जन्मे!भारत जगतगुरू बनने वाला है।कृष्ण सबके मालिक।हमसब को भवसागर पार करना है"।इन सारी बातोँ को जब मैँने हिँदी मेँ बरमेश्वर बाबू को बताया है,वो उछल पड़े हैँ और उस अमेरिकन के हाथ धर अंग्रेजी भाव लिये हिँदी मेँ बोले हैँ"अरे बाबा अंगरेज।केतना बिदवान हैँ मर्दे आप।आई एम योर भक्त अब से।यू डीप अध्यन एण्ड जानकारी।यू एकदम भेरी भेरी ज्ञान एंड नॉलेज धर्म एण्ड कृष्ण भक्ती ओर भगवत् गीता।बाप रे क्या आदमी हैँ आप।ऐसे थोड़े दू सौ बरस राज किया अंगरेज।यू आर किँग।"।बरमेश्वर बाबू बौरा चुके हैँ उसकी विद्वता और भारत के प्रति भक्तिपूर्ण समर्पण से।उनकी आँख मेँ आँसू आ गया है भारत को जगतगुरू बनता देख।तब तक मैँने पूछा"आपको फंड इस्कॉन देता है घुमने फिरने का"।वो बोला"कृष्ण देता है"।मैँ मान गया हूँ,ये संपूर्ण बबवा बन चुका है।विचार और शातिरपने सबसे।फिर वो बोला"मुझे माँ बाप पागल समझता है पर मैँ कृष्णभक्त हूँ"।सोच रहा हूँ:-)भारत हो या अमेरिका,माँ बाप एक से सही होते हैँ।जय हो।

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