Thursday, March 10, 2016

Art of Living

हे संत शिरोमणि!ये "आर्ट ऑफ लिविँग" क्या है?बेटा "आर्ट ऑफ डीलिँग" ही "आर्ट ऑफ लिविँग"है।हाँ बेटा जहाँ मौका मिले डिलो,जिसको तिसको पकड़ के डिलो,हर टॉपिक पर डिलो,जो जानो उस पर डिलो,जो ना जानो उस पर भी डिलो,हिल हिल के डिलो,हँस हँस के डिलो,दोनो हाथ ऊपर भी कर डिलो,एक नीचे एक ऊपर भी कर डिलो,कभी गर्दन हिलाय डिलो,कभी कँधवा उचकाय डिलो..डिलो बस डिलो बेट,.इस तरह डिलिँग कर खाने कमाने भर जुगाड़ कर लेना ही"आर्ट ऑफ लिविँग" है।यही कर कोई नेता हुआ कोई बाबा।जाओ तुम्हेँ भी आशीर्वाद..भयंकर आशीर्वाद।वैसे तुम करते क्या हो बेटा?बाबा हम UPSC की तैयारी करते हैँ।इतना सुना कि बबवा जी भड़क गये"दुष्ट लड़का मजा ले रहे थे मेरा।अबे तुम लोग खुद ऐतना बड़ा डिलिँगबाज होता है रे,भाग हमारा धंधा मेँ डंडा करने आये हो।रोज चाय दुकान पर ये डिलिँग ही तो करते हो बे"।मैँ हा हा ही ही करले चाय दुकान पर आ गया हूँ।जय हो।

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